छत्तीसगढ़ी समाज पार्टी
कहानी छत्तीसगढ़ी समाज पार्टी की, कहानी राज्य निर्माण की।
5 अगस्त 1980, रायपुर शहर का वो दिन, जब सभी कार्यालय, बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन, सभी जगह के नाम की पट्टियों, सूचना पटल और बोर्डो को काले रंग से पोत दिया गया। जगह -जगह लिखे गए नारों में बस यही जिक्र था कि “सारे काम-काज छत्तीसगढ़ी भाषा मे ही किया जाए”। यहां तक कि आकशवाणी से समाचार भी छत्तीसगढ़ी में ही प्रसारित किया जाए। रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म से लेकर वेटिंग रूम तक सारी पट्टियां काले रंग में रंगी हुई थी। कड़ी सुरक्षा के बाद भी जिलाधीश के निवास और कार्यालय में लगे उनके नेम प्लेट भी काले रंग से पुती हुई थी।
तब शहर में सबसे बड़ी चर्चा का विषय था की, यह सारे काम किसने किये है ? इस घटना की सच्चाई तो उस समय सामने नही आई, पर सरकार और जनता जानती थी कि यह काम “छत्तीसगढ़ी समाज पार्टी” के लोगो ने रातों-रात किया है। पार्टी के कार्यकर्ताओं ने यह काम इतने सफाई से किया कि किसी को भनक तक नहीं लगी। रंगे हाथ पकड़ना तो दूर रातभर चल रहे काली पुताई के काम में न तो लोगों ने किसी को देखा न ही कुछ सुना। अगर किसी ने देखा भी होगा तो कहीं न कहीं वो भी छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण का समर्थक ही रहा होगा।
छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण में सबसे अहम भूमिका निभाने वाली “छत्तीसगढ़ी समाज पार्टी” का गठन 1965 में हुआ था। पार्टी का मकसद स्थानीय लोगो में जागरूकता लाना, उन्हें आपस में जोड़ना, उनके आर्थिक और सामाजिक स्थिति में सुधार लाने के साथ-साथ क्षेत्रीय विकास के लिए मास्टर प्लान बनाना भी था। तीन सालों में यह मांगे जनभावना बनकर उभर चुकी थी। 1967 में ही राष्ट्रपति डॉ. राधाकृष्णन के पास छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के लिए ज्ञापन भी पहुंच चुका था। इत्तफाक से उस वक़्त गृह राज्य मंत्री विद्याचरण शुक्ल थे, जो प्रदेश की राजनीति का बड़ा चेहरा थे। इसके बावजूद यह मांगे सिर्फ मांगे बनकर ही रह गयी।
पार्टी के अध्यक्ष, स्वन्त्रता सेनानी और छत्तीसगढ़ी समाज के संस्थापक नरेंद्र दुबे ने छत्तीसगढ़ राज्य के समर्थन में कई तथ्यों को सामने रखा था। जैसे मध्यप्रदेश को दो तिहाई राजस्व छत्तीसगढ़ से ही मिलता है, पर फिर भी उस राशि का बारहवां हिस्सा भी इस क्षेत्र पर खर्च नहीं होता। वहीं जापान को लौह अयस्क भेजने वाली बैलाडीला खान से साढ़े चार सौ करोड़ का लाभ मिलने के बावजूद इस क्षेत्र को किसी तरह का मुनाफा नहीं हुआ। बेरोजगारी की बात करें तो वो भी छत्तीसगढ़ में हर दस में से आठ घरों में थी। इन सब तथ्यों के साथ नरेंद्र दुबे और उनके साथी दीनदयाल वर्मा, जागेश्वर प्रसाद, जी.पी. चंद्राकर और अनिल कुमार दुबे की अगुवाई में छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के लिए 1978 में रैली निकाली गयी। जो हमारी प्रथम ऐतिहासिक रैली बन गयी।
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