भारत-रुस संबंध : वैश्विक परिदृश्य
"सर पे लाल टोपी रुसी फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी "
पंक्ति में निहित सार तत्व बेहद संजीदगी से भारत-रूस मैत्री की जो अभिव्यक्ति दे रहे है वह आगे भी रहेगा यह कहना आज के समय में मुश्किल है। वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में किसी भी देश की मित्रता उसके निजी हितो के आधार पर निर्धारित होता है और ऐसा ही कुछ भारत और रूस के सम्बन्धो में भी देखा जा सकता है। महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि ये दोनों देश द्विपक्षीय और बहुपक्षीय मंचों पर साझा हितों के लिए सक्रिय दिखते है , वही दूसरी तरफ मास्को की बीजिंग और इस्लामाबाद की ओर शिफ्टिंग और भारत की अमेरिका से नजदीकी यह दर्शाता है कि दोनों देशो के बीच प्रतिकर्षण भी बढ़ रहा है। एक ओर जहाँ रूस ने पाकिस्तान को हथियारों की आपूर्ति करके भारत के हितों की उपेक्षा की वहीँ भारत भी NSG की सदस्यता नहीं मिलने पर रूस के साथ कूडनकुलन परमाणु परियोजना के 5 वीं और 6 वीं रिएक्टर यूनिट को विकसित करने से जुड़े MoU को ठन्डे बस्ते में डाल दिया।
इतिहास की बात की जाये तो सोवियत संघ के विघटन के बाद भारत रूस सम्बन्ध में कुछ समय ठहराव आया था जो 1990 के दशक में समाप्त हुआ। 2000 में रुसी राष्ट्रपति पुतिन की दिल्ली यात्रा और "डिक्लेरेशन ऑफ़ स्ट्रेटजिक पार्टनरशिप " से सम्बन्ध में गर्माहट आई। पूर्व में पोखरण-2 के बाद अमेरिका द्वारा लगाए प्रतिबंधों के बावजूद रूस ने भारत को 58 मीट्रिक टन परमाणु ईंधन की आपूर्ति की थी। 58 वीं गणतंत्र समारोह में रुसी राष्ट्रपति पुतिन ने मुख्य अतिथि के रूप में आ कर मित्रता को और मजबूत किया। भारत और रूस विज्ञान के क्षेत्र में भी पुराने सहयोगी रहे है। परमाणु ऊर्जा हो या फिर रक्षा क्षेत्र दोनों देश हमेशा से साझा हितो के लिए साथ रहे है।
भारत रूस 16 वे शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी ने मेक इन इंडिया अभियान में रूस को महत्वपूर्ण साझेदार बनाने की इच्छा व्यक्त की थी। यद्यपि भारत रूस द्विपक्षीय व्यापार में निराशाजनक प्रगति हुई है , लेकिन भारत के लिए रूस में विशाल उपभोक्ता बाज़ार है और इस दिशा में इंडो रूस फोरम ऑन ट्रेड एंड इन्वेस्टमेंट तथा ईयर ऑफ़ रसिया इन इंडिया जैसे प्रयास किये जा रहे है। मेक इन इंडिया के तहत कामोव-226 हेलीकाप्टर समझौता पहली बड़ी रक्षा परियोजना है।
हाल ही में 1-3 जून 2017 को रूस में हुए 21 वें सेंट पीटर्सबर्ग इंटरनेशनल इकोनोमिक फोरम में प्रधानमंत्री मोदी ने विशिष्ट अतिथि के रूप में भाग लिया जहाँ उन्होंने कई द्विपक्षीय समझौते किये। कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र के 5 वी और 6 वी यूनिट के निर्माण हेतु समझौता साथ ही दो वर्षो के लिए सांस्कृतिक आदान प्रदान के लिए भी समझौता हुआ है। नागपुर से सिकंदराबाद के बीच में उच्च गति की रेलवे सेवा के क्रियान्वयन के लिए रूस द्वारा सहयोग प्रदान किया जायेगा।
तेजी से बदल रहे वैश्विक परिदृश्य में जिस तरह से अमेरिका , रूस तथा चीन के सम्बन्धो को नए रूप में देखा जा सकता है , उसमे यह जरुरी है कि भारत अपने कूटनीतिक , आर्थिक , राजनितिक तथा सामरिक सम्बन्धो को नया रूप देकर के मॉस्को ,बीजिंग एवं वाशिंगटन के मध्य सामंजस्य स्थापित करे। रूस वर्तमान में स्वयं को नयी अर्थव्यवस्था के वाहक के रूप में स्थापित करने में असफल रहा है साथ ही उसकी अर्थव्यवस्था लड़खड़ाती दिख रही है , यूरोपीय देशों की भी उस पर त्योरिया चढ़ी हुई है। ऐसे में उसे अपने परंपरागत मित्र भारत के सहयोग की जरुरत है। भारत को भी दक्षिण एशिया में शक्ति संतुलन के लिए रूस के सहयोग की आवश्यकता है ताकि वह चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित कर सके। यह नहीं कहा जा सकता कि भारत , रूस के बिना कुछ नहीं कर सकता पर यह जरूर है की रूस के साथ होने से भारत को वैश्विक पटल में अपनी स्थिती मजबूत करने में मदद मिलेगी।
Bahut badhiya bani bhai
ReplyDeletethanks brother.
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