One Belt One Road (OBOR) और भारत की नीति

                                                                           हाल ही में हमने चीन के OBOR  प्रोजेक्ट के बारे में समाचार के माध्यम से सुना ही है। चीन इस प्रोजेक्ट द्वारा अफ्रीका यूरोप और एशिया को आपस में जोड़कर एक आर्थिक गलियारा बनाने की बात कह रहा है। उसके अनुसार यह गलियारा संसाधनों से परिपूर्ण पूर्वी एशिया को विकसित यूरोप से जोड़ने के लिए बनाया जाना है। इस परियोजना के दो मुख्य तत्व है पहला सिल्क रोड इकनोमिक बेल्ट (SREB) जो प्रशांत महासागर को बाल्टिक सागर से जोड़ता है और दूसरा मेरी टाइम सिल्क रोड  जो पूरी तरह से चीन, मध्य एशिया , यूरोप व रूस को एक साथ लाने तथा चीन को अरब की खाड़ी एवं भूमध्य सागर से मध्य व पश्चिम एशिया के द्वारा जोड़े जाने पर केंद्रित है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस परियोजना ने काफी हलचल पैदा की है। आइये इसी हलचल के बारे में कुछ बाते जाने। 
                                                                                                                     

कुछ देशो को छोड़कर पुरे विश्व में इस परियोजना को लेकर संदेह का माहौल है। कुछ लोगो का मानना है कि इस परियोजना का उद्देश्य आर्थिक विकास न होकर सम्पूर्ण एशिया में राजनितिक सर्वोच्चता हासिल करना है। इसके फलस्वरूप  अमेरिका ने भी दो प्रमुख इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं को पुनर्जीवित करने की कोशिश की है ताकि OBOR के प्रभाव को संतुलित किया जा सके। इन दो परियोजनाओ के भाग है : न्यू सिल्क रोड और इंडो-पैसिफिक इकनोमिक कॉरिडोर।  इन परियोजनाओं में भारत की भूमिका भी अहम है, इसके अलावा भी भारत अन्य महत्वपूर्ण परियोजनाओं जैसे ईरान में छब्बर से लेकर अफगानिस्तान तक ट्रेड तथा ट्रांजिट कॉरिडोर से जुड़ा हुआ है। वैसे भी एशिया में बड़ी कनेक्टिविटी परियोजनाओं को शुरू करने का एकाधिकार चीन के पास नहीं है।भारत में यह क्षमता है कि वह आर्थिक व भूराजनैतिक क्षेत्र  नई  परियोजनाओं की शुरुआत कर सके और चीन यह बात अच्छे से जानता है इसलिए वह OBOR  में भारत के सहयोग की उम्मीद लगाए हुए है।

                                                                                                                                
भारतीय परिपेक्ष की बात की जाये तो बहुत से लोगो का मानना है की OBOR  प्रोजेक्ट भारतीय अर्थवयवस्था के लिए लाभदायक होगा। वर्तमान समय में अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था पर किसी राष्ट्र का प्रभाव उसकी आर्थिक क्षमता के आधार पर अधिक होता है, बजाय उसकी सामरिक क्षमता के।  कुछ आलोचकों के अनुसार भारत में अभी भी मुख्यतः सामरिक पक्ष को अधिक महत्त्व दिया जाता है और चीन की सफलता को भी उसी नजरिये से देखा जाता है। साथ ही अगर भारत विश्व पटल में अपने प्रभाव को बढ़ाना चाहता है तो उसे आर्थिक क्षेत्र में भी काम करने की जरूरत है। लेकिन भारत दो आधारों पर इस परियोजना से आपत्ति है पहला चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) जो PoK  से होकर जाता है , दूसरा कि यह परियोजना एकतरफा राष्ट्रीय प्रयास है जिसमे अन्य देशो की भागीदारी महत्वपूर्ण नहीं है। 
                                                       

भारत चाहे तो OBOR परियोजन में शामिल होकर अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूती दे सकता है पर बात यहाँ सिर्फ आर्थिक समृद्धि की नहीं है, चीन के CPEC प्रोजेक्ट से PoK में उसकी दखल बढ़ेगी। भारत यह चाहता कि PoK का मामला द्विपक्षीय रहे किसी अन्य देश का उसमे हस्तक्षेप न हो। साथ ही यह भी महत्वपूर्ण बात है कि  यदि इस प्रोजेक्ट के द्वारा पाकिस्तान को आर्थिक लाभ हुआ तो इस क्षेत्र का आर्थिक , भौगोलिक और क्षेत्रीय संतुलन प्रभावित होगा। पाकिस्तान इस आर्थिक लाभ का प्रयोग आतंकवाद को बढ़ावा देने में कर सकता है जो भारत के लिए नुकसानदेह है। मेरा मानना है की भारत के पास वो क्षमता है कि  वह OBOR में शामिल हुए बगैर भी अपनी आर्थिक स्थिती मजबूत कर सकता है। उसे अपनी सम्प्रभुता को ताक पर रखकर आर्थिक समृद्धि के पीछे नहीं जाना चाहिए। 

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